बहुत सारे स्थानों से इको-फ्रेंडली गणेश मूर्ति के प्रति संस्था को पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया गया है। 

बृहन्मुंबई महानगर पालिका (BMC )  की तरफ  से  "Go  Green  Campaign " के अंतर्गत साथ हीपर्यावरण के पूरक गणेशजी की मूर्तियांबनाने के प्रति २०१०  से २०१२  तक लगातार तीन वर्षों तक संस्था को प्रमाणपत्रों द्वारा सम्मानित किया गया। 
)  महाराष्ट्र  प्रदूषण नियंत्रण  मंडल  (MPCB ) साथ ही मुंबई  मिरर असोसियशन  ,टाइम्स रेड सेल’  इन सब की तरफ से  टाइम्स स्पेशल हरित गणपति अवार्ड २००९’नामक पुरस्कार प्रदान किया गया।  
) २००८  में पवई  में  "निती " (NITIE )  की ओर से प्रदर्शित किए गए  मूर्ति प्रदर्शन में मुंबई के महापौर डॉ  शुभा राऊल द्वारा संस्था को गौरावान्वित किया गया।

इस प्रकार निष्काम , निस्वार्थी  भाव  प्रेरणा से चलने वाले उपक्रम में सभी उम्र कें श्रद्धावान  सिंह  और वीरा  पुरे उत्साह से भागलेते हैं।  गणेशोत्सव पर्यावरण पूरक ही होना चाहिए यह अपने कृति से प्रत्यक्षरूप में दिखा देने वाले श्रीअनिरुद्ध उपासना फाऊंडेशन के कार्य में श्रद्धावानों के आगे बढ़ने से पर्यावरण के ह्रास को अवश्य टाला जा सकता है।

संस्था के तरफ से पहले साल २००५  में  ३३५ मूर्तियां बनाई गईं कुछ सालों तक ३००० मूर्तियां और अब हर साल  ६००० से ७०००  मूर्तियां  बनाई जाती है।  २०१७ में ६५००  श्रद्धावानों ने संस्था की इको फ्रेंडली गणेश मूर्तियों की पूजा की थी।  भारत के अलावा ये  यू यस , कनाडा , ऑस्ट्रलिया , न्यूज़ीलैंड ,साऊथ अफ्रीका ,श्री लंका एवं खाडी़ देशों के श्रद्धावानों  ने भी इन मूर्तियों को अपने-अपने देशों में अपने-अपने घर ले जाकर श्रद्धापूर्वक उनका पूजन किया।

इसके लिए कागज़ को भिंगोकर उसके लग्धे में सफ़ेद स्याही एवं, पेड़ से निकला जाने वाला गोंद मिलाया जाता है।  पूरा मिश्रण भली-भॉति मिला लेने के बाद उसे सांचे में भरा जाता है और फिर मूर्तियां बनाई जाती है। मूर्ति सूखने के बाद उस पर  प्राकृत्रिक रंग (फूड कलर ) का इस्तमाल कर उसे का़फी खुबसूरती से सजाया-संवारा जाता है।  ये मूर्तियां पानी में आसानी घुल जाती हैं और इससे पर्यावरण का संतुलन भी बना रहता है। 

इस तरह से नविन पद्धतिनुसार मूर्तियां बनाने के लिये संस्था को लाइसेंस प्राप्त होने के बावजूद भी संस्था ने इसका अधिकार स्वयं अपने पास ही रखकर सर्वसामान्य लोगों के लिए ये तरीका खुला रखा  और जनता को पर्यावरण रक्षा के लिए जागृत किया। संस्था के इस उपक्रम के प्रति पुरे जगभर से काफ़ी प्रतिसाद मिल रहा है।
आजकल  जो मूर्तियां बनती हैं वे प्लास्टर ऑफ़ पेरिस  की बनती हैं जो  पर्यावरण के लिए अतिशय हानिकारक होती हैं। इन मूर्तियों के लिए इस्तेमाल किये हुए रंग और प्लास्टर ऑफ पेरिस पानी में नहीं घुलते और इसका प्रभाव हम सभी के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। जहरीले केमिकल के कारण पानी में आम्ल अशुद्धता बढ़ जाती है साथ ही इसे बनाने के लिए जिस धातु का प्रयोग किया जाता है उससे जलजीवन भी खतरे में जाता है। और यदि इस पानी का इस्तेमाल रोज़मर्रा के जीवन में किया जाता है तो इससे भी बहुत सारी बीमारियों के जन्म लेने की संभावना बनी रहती है।

इन सभी दुष्परिणामों  से बचने के लिए " सद्गुरु अनिरुद्ध उपासना फाउंडेशन " ने अपने संलग्न संस्थाओं की मदत से पर्यावरणपूरक गणेश मूर्ति बनाने का उपक्रम हाथ में लिया है। ऐसी मूर्तियां पानी में आसानी से पूरी तरह घुल जाती है और इससे कोई हानि भी नहीं होती है।
  


२००५  से "अनिरुद्धाज यूनिवर्सल बैंक ऑफ़ रामनाम " एवं "श्री अनिरुद्ध आदेश पथक "इनके माध्यम से तथा श्री अनिरुद्ध बापू जी के मार्गदर्शन के अंतर्गत पर्यावरणपूरक मूर्ति बनाने का कार्य शुरू किया गया है। श्रद्धावानों द्वारा लिखित रामनाम बही के जप वाले कागज़ों का इस्तेमाल करके ये मूर्तियां बनाई जाती है।